Saturday 13 September 2014

राम राम जी |

आज कलयुग के युग में भी हम अपने चारो ओर हर जीव को भगवान् की प्राप्ति हेतु प्रयास करते हुए देखते हैं| कोई जीव कर्म के मार्ग पर चलकर, कोई ज्ञान के मार्ग  से, कोई भक्ति के मार्ग पर चलकर अथवा कोई और किसी मार्ग पर चलकर भगवान् को प्राप्त करने का प्रयास करता हुआ प्रतीत होता है| हर जीव भगवान्, धर्म, ज्ञान और मोक्ष की बातें करता है, प्राय: आजकल हर जगह, हर उम्र के जीव की बातों में ईशवर की चर्चा होती है प्रत्येक मनुष्य अपनी अपनी भक्ति, अपने अपने ज्ञान, अपने अपने श्रेष्ठ कर्मो की श्रेष्ठता को सिद्ध करता हुआ दिखाई पड़ता है| कई बार तो चर्चा के विषय को भी दुसरे के विषय से श्रेष्ठ साबित करता है| अथार्त श्रीराम को श्री कृष्ण से अथवा ईश्वर को अल्लाह से श्रेष्ठ बताने का प्रयास करता है| चर्चा कैसी भी हो परन्तु चर्चा का विषय आनंद तो देता ही है|

कोई जीव कर्म के मार्ग को कठिन बताता है, कोई कहता है भक्ति बहुत कठिन है, किसी जीव को ज्ञान का मार्ग समझ में नहीं आता| वह जिस मार्ग पर स्वंय चलता है उसको वह सरल और दुसरे मार्गो को कठिन कहता है अथवा उनमे दोष निकालने से भी नहीं चुकता, अपने पक्ष में वो हमारे मूल ग्रंथो का भी उदारहण देता है जो की सत्य होते हैं| और दूसरा व्यक्ति अपने मार्ग में पूर्ण श्रद्धा रखते हुए भी पहले के ज्ञान और तर्क की क्षमता के आगे अपने आप को बेबस पाता है| यह सब जानते हैं कि मंजिल सबकी एक है जैसे काशीजी  में अनेको लोग प्रतिदिन अलग अलग स्थान से और अलग अलग मार्गो से आते हैं पर पहुँचते काशीजी  में ही हैं|

अब प्रश्न यह उठता है कि ईश्वर की प्राप्ति का कौन सा मार्ग हमें अपनाना चाहिए?

किसी जीव को ज्ञान मार्ग कठिन लगता है और किसी को भक्ति मार्ग| सरलता और कठिनता अथवा सुगमता और अगमता यह जीव जीव पर निर्भर है| जो व्यक्ति जिस कला में निपुण है, उसके लिए वही सुगम है, और जो निपुण नहीं है उसके लिए कठिन है|

जैसे काशीजी पहुँचने के मार्ग अलग अलग हैं, कोई किसी मार्ग से जाना पसंद करता है कोई किसी मार्ग से| कोई सड़क मार्ग से, कोई वायु मार्ग से कोई जल मार्ग से| हर जीव अपने सामर्थ्य, अपनी इच्छाशक्ति और अपनी योगत्या के अनुसार ही अपने गंतव्य स्थान की ओर चलने का विचार करता है| किसी की रीस करके अपना मार्ग बदलना उचित फल नहीं देता उसी प्रकार ईश्वर की प्राप्ति भी अपने ही चुने हुए मार्ग से की जानी चाहिए| पानी के उलटे बहाव को पार करने में जहाँ हाथी का बल काम नहीं आता और हाथी बहाव में बह जाता है वहीँ  छोटी सी मछली उलटे बहाव में भी तैर कर पार कर सकती है| और  अगर हम नमक और चीनी का मिश्रण बना कर उन्हें अलग अलग करना चाहें तो व्यक्ति कितना भी बुद्धिमान और कार्यकुशल हो वह अपनी असमर्थता प्रकट करता है परन्तु यही कार्य एक छोटी सी चींटी बड़ी सरलता से कर देती है|

हमें सरलता और कठिनता शब्द में उलझने की आवश्कता नहीं है| किन्तु हमें तो यह निर्णय करना चाहिए की हमारे लिए सुगम क्या है और अगम क्या है| हमारे अन्दर जिस भाव की भी अधिकता हो हमें उसी भाव को अपना मार्ग बना कर अपने ईश्वर की ओर चलने की चेष्टा करनी चाहिए|
श्रीरामचरितमानस में माँ शबरी भक्ति भाव से प्रभु श्रीराम को प्राप्त करती है|

सुग्रीव डर भाव से (सुग्रीव बाली के डर से ही श्रीराम के चरणों में आता है ) श्रीराम को प्राप्त करता है|
विभीषण लालच भाव से ( जैसे सुग्रीव के भाई बाली को मारकर श्रीराम ने सुग्रीव को राजा बना दिया) श्रीराम को प्राप्त करता है|
राक्षस शत्रु भाव से श्रीराम को प्राप्त करते हैं|

गोस्वामी तुलसीदास जी से जब पूछा गया की आपके श्रीराम डर भाव से भी, शत्रु भाव से भी, लालच भाव से भी और अन्य भाव से भी भजने पर मुक्ति दे देतें हैं पर यह तो किसी भी शास्त्र में नहीं है| तो श्री तुलसीदास जी बोले यह मेरे श्रीराम के कृपा शास्त्र में है|

जय श्री राम